“कीमत”

कीमत चुका कर ही स्वामित्व का अधिकार मिलता है।

सेवा या वस्तु कीमत दिए बिना नहीं मिलती, मिले तो समझो स्वामी मिला है स्वामित्व नहीं।

कृपा ही लेनी है तो उसकी लो जो सबको देता है, वही है सबका एकमात्र स्वामी जो कर्मफल और निमित देता है।

कीमत वो भी लेता है, निमित दिया तुमको जैसे, बनाकर निमित तुम्हें वैसे, सबपर कृपा बरसाता है।

स्वामी तुम जब भी बनो, कीमत देना मत भूलो।

वंदेमातरम, भारत माता की जय।

हर्ष शेखावत