जन्म से जीवनप्रियंत, नैतिकता का पाठ हम सब को अपने माता पिता व बड़ों से। शैक्षणिक, व्यावसायिक और आध्यात्मिक शिक्षक और गुरु से, मिला है और मिलता रहेगा।
नैतिकता की परिभाषा, व्यक्ति, समाज, वक्त, स्थान, ज्ञान, विज्ञान, संस्कार और संस्कृति पर निर्भरता के कारण, नियम, शैली, विचार, आचरण, क्रिया नीयत और परिणाम आधारित है।
सरल शब्दों में हर वो सोच, विचार, आचरण और कार्य जिसके परिणाम में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हो, अनुसरणीय आदर्शों और संस्कृति का विकास हो, व्यक्तित्व समाज और राष्ट्र का निर्माण हो, वह नैतिक है। इन्हें नियमबद्ध होकर, स्वभाव बना, नेकनीयत के साथ जीवन में धारण करना ही नैतिकता है।
इसके विपरीत आप की सोच विचार आचरण से नकारात्मकता, उपेक्षा, अनादर, घृणा और तिरस्कार की भावना और बदनियती झलकती है, और किसी अन्य का बेवजह अहित, सिर्फ आपके निजी स्वार्थ के लिए तो यह अनैतिक है। और ऐसा करना अनैतिकता।
क्या नैतिकता है?
न होती, तो ये लेख न लिखा जाता और आप पढ़ भी नहीं रहे होते। स्वरूप बदलती नैतिकता, प्रतिकूलता वश अनैतिक हो रही है।
स्वार्थ भी नैतिक है, यदि परोपकार निहित है, न कि जनसामान्य का अहित। प्रतिकूल: किसी अन्य की हानी, स्वयं पे उपकार ऐसा स्वार्थ अनैतिक है।
झूठ और क्रोध भी राष्ट्र की सुरक्षा या किसी अन्य निर्दोष की रक्षा के लिए बोला/किया तो नैतिक है। और वही झूठ और क्रोध जब स्व रक्षा और दोषी की रक्षा करे तो वह अनैतिक हो जाता है।
झुकना विनम्बरता से स्वयं फल फूल कर दूसरों को उठाने के लिए नैतिकता है। वहीं कठोर बन दूसरे को बलपूर्वक झुकाने/मिट्टी में मिलाने हेतु कष्टकारी झुकना अनैतिक है।
नैतिकता दीर्घकालिक सुख, तो अनैतिकता क्षणिक सुख देगी, ये जानना और समझना ही आवश्यकता है।
धसर्मसंगत और नेक नियत से किया नैतिक कार्य ही आपको यश और कीर्ति प्रदान करेगा।
इसके अतिरिक्त अच्छे व्यक्तित्व, समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए नैतिकता अति आवश्यक है।
क्योंकि अनैतिक आचरण ही पतन का सबसे बड़ा कारण है।
हर्ष शेखावत
