विवाद और विवादास्पद

मतभेद से वाद-विवाद और विवाद से विवादास्पद।

आप एकमत नहीं, इसलिए आप वाद विवाद करेंगे, अपने द्वारा जुटाई जानकारी और बुद्धि द्वारा तर्क/कुतर्क का प्रियोग कर विवाद उत्पन्न करेंगे और विषय हो जाएगा विवादास्पद।

जुटाई गई जानकारी के बारे में आप कितना जानते है यह एक बड़ा प्रश्न है, विवेक से स्वयं या दूसरे की जुटाई जानकारी का तथ्य अवलोकन कर, सच्चाई जान, सच मान जाइए विवाद खत्म।

कल की उलझन, परिस्तिथियाँ बदल जाने से आज सुलझी जान पड़ सकती है तो, कल फिर उलझी होने का आभास करा दे।

वजह यहाँ विषय नहीं, विषय पर एकत्रित जानकारी, तथ्यों का अभाव, देखने वाले का दृष्टिकोण, बुद्धि प्रयोग और सब से प्रमुख परिस्तिथि है।

यदि तर्क वितर्क ही विवाद है तो किसी भी विषय  पर दो बुद्धिजीवी तर्क वितर्क कर विवादित बना सकते हैं मगर हमेशा ऐसा नहीं होता।

किसी भी विषय पर बुद्धि के स्थान पर विवेक और तर्क के स्थान पर तथ्य उपयोग कर विवाद को खत्म और विषय को अविवादित बनाया जा सकता है।

बुद्धिजीवियों द्वारा स्वार्थवश जानकारियाँ जुटा कुतर्क और बुद्धि प्रयोग से स्वार्थ सिद्धि हेतु स्तिति को प्रतिकूल करने की चेष्टा कर विवाद आरम्भ करना भी विषय को विवादित बना सकता है।

मगर तभी, जब हम परिवार, समुदाय, भाषा, जाति, पंथ और धर्म के नाम पर गलत के साथ खड़े हो स्तितिथि को तथ्यों के प्रतिकूल और तर्क के अनुकूल कर रहे हैं।


उदाहरण, धारा 370 विवादित था है नहीं। राममंदिर का विषय विवादित था है नहीं। वर्तमान उदहारण लें तो प्रतिकूलता के कारण CAA, NRC और किसान आन्दोलन विवादित है, मगर अनुकूल परिस्तिथि में इनपर बने कानून अब विवादित नहीं। विवादित होने का भ्रम हो सकता है।

भ्रम न हो इसके लिए जाने अनजाने हम गलत को प्रोहतसान दे विवाद को जन्म देने और किसी भी विषय को विवादित बनाने में सहभागी न बनें।

विवेक से विवाद टाले तो जा सकते है पर विवाद खत्म हो ये सुनिश्चत करने के लिए सामर्थ्य और शक्तिवर्द्धन अनिवार्य है।

विषय कोई भी हो परिणाम जनकल्याण हेतु हर्ष वर्द्धक हैं और परिस्तिथि अनुकूल, विषय विवादित नहीं रह जाता और न ही विवाद का कोई स्थान।

हर्ष शेखावत