“सत्य यही है, निष्पक्ष कुछ और कोई नहीं है”

पक्षपात मतलब यदि झूठ का साथ और निष्पक्ष मतलब न सत्य और न असत्य का साथ, यह संभव ही नहीं है। यदि हाँ, तो क्या निष्पक्ष होना आवश्यक है?

ये प्रश्न इसलिए क्योंकि जितना नुकसान पक्षपात करने वाले लोगों से है, उससे कहीं अधिक हानि निष्पक्ष कहे जाने वाले लोगों द्वारा, परिवार, समाज, राष्ट्र और धर्म को पहुचाई गई है।

पक्षपाती से सावधान और सचेत रह कर, विरोध और समझदारी से वार कर, समाधान खोजना और नुकसान से बचना आसान है।

वहीं निष्पक्ष समझा और कहा जाने वाला व्यक्ति हमेशा असत्य और गलत का मनोबल बढ़ाता है और विरोध और वार से बच जाता है और अधिक नुकसान करता है।

नैतिक पक्ष के साथ खड़े न हो कर व्यक्ति न चाहते हुए भी अनैतिकता का पक्ष ले अधर्म का सहभागी हो जाता है।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है, जो धर्म के साथ नहीं, वो अधर्म के साथ है, धर्मयुद्ध में कोई निष्पक्ष नहीं।

हर्ष शेखावत