” मेरा-तेरा, अपना-पराया”

यह मेरा है, तो वह तेरा है, यह व्यक्ति की संकीर्ण और छोटी सोच है। उदार चरित्र वाले व्यक्ति जिसकी सोच विस्तृत है, उसके लिए कोई अपना-पराया नहीं सम्पूर्ण जगत एक परिवार है, वह तेरा-मेरा अपना-पराया नहीं करता।

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम, उदारचरित्रणाम तू वसुधैवकुटुम्बकम

जो आज तुम्हारा है, तुमसे पहले ये किसी और का था। और निश्चित ही ये कल किसी और का होगा।

जब हमारे अस्तित्व का प्रयोजन हमारा नहीं, तो मेरे प्रयोजन के लिए अस्तित्व में वस्तु मेरी कैसे हो सकती है? तो फिर इस भ्रम का क्या फायदा कि ये मेरा है

वह जो आपको किसी और के अधिकार क्षेत्र में दिखाई दे रहा है, और आपके मन में उत्सुकता, कामना या आसक्ति का संचार कर रहा है वह भी सिर्फ क्षणिक और अनिश्चित है। उसे तुम्हारा या किसी और का अधिकार मिलना वक्त के हाथ में  है।

प्रयोजन पूर्ण होते ही वह जो कल किसी ओर का था आज तेरा है, कल प्रयोजन पूर्ण कर फिर न जाने किसका होगा। फिर यह भ्रम क्यों कि वह तेरा है।

जब श्रष्टि रचने वाले ने, रचना करते वक्त बिना किसी भेद भाव जरूरत और सामर्थ्य के अनुरूप उसके द्वारा अस्तित्व में हर वस्तु सबको उपलब्ध की तो, उस नारायण अंश नर द्वारा तेरा-मेरा करना निश्चित ही संकीर्ण और छोटी सोच है

विस्तृत सोच, उदार हृदय और चरित्र के व्यक्ति, जानते और मानते हैं सम्पूर्ण जगत एक है और हर प्राणी जगत जननी के परिवार स्वरूप इसका ही हिस्सा है।

परिवार में असमान स्थिति का होना आपके कर्म और बहुत से बाहरी कारणों पर निर्भर करता है। बहुत बार बाहरी कारण आपके नियंत्रण में नहीं होते, इसलिए उदार चरित्र का अर्थ ये भी है कि आपकी दृष्टि अपने कर्म पर केंद्रित रहे। परिणाम यथायोग्य प्राप्त होते रहेंगे।

परिवार खुशहाल समृद्ध और व्यवस्थित रहे इसके लिए सही के लिए प्रोत्साहित और पुरिस्कृत करना तो गलत पर अंकुश और दण्ड का प्रावधान भेद भाव की श्रेणी में नहीं आता और उदारचरित्र का हिस्सा है।

उदार व्यक्ति तेरे-मेरे और कम-ज्यादा के कुचक्र से बचता है। वह जानता है कम ज्यादा के पीछे का कारण क्या है। उसे मालूम है वह और कोई ओर जो उपभोग कर रहा है उसे उसकी जरूरत और सामर्थ्य के अनुरूप कर्म के परिणाम स्वरूप मिला है। वह अपने पराए का भेद नहीं करता, यही वजह है कि उसके लिए सम्पूर्ण जगत एक परिवार है, जिसका वह अभिन्न हिस्सा है।

हर्ष शेखावत