“गलत गलत होता है, समझौता न करें”

अनैतिक तब बढ़ता है, जब नैतिक कमजोर पड़ता है। गलत विचार और आचरण पर अंकुश लगाएँ।

जब व्यक्ति की जबान, तन और मन अश्लीलता करता है, तो माँ बहन बेटी अंकुश का काम करती हैं।

मगर जब वही माँ बहन बेटी, ये समझौता कर ले कि आदमी और लड़के तो ऐसे ही होते हैं, तो उनके अंदर अनैतिक का भय खत्म और अनैतिकता निरंकुश हो जाती है। जैसा कि हम अपने आसपास देख सकते हैं।

अपनों और कुल का नाम खराब होने का भय, समाज में बदनामी का भय, संस्कार और संस्कृति मिटने का भय ये अंकुश व्यक्ति को गलत करने से आज भी रोक सकते है।

बहुत आसान है पुनः गलत पर अंकुश लगाना, अंकुश का भय नियंत्रित और दिशा निर्देशित करता है न कि कमजोर। अंकुश के शक्तिशाली होने से आप स्वयं और समाज मजबूत होगा।

शुरुवात स्वयं और परिवार से करें, अंकुश को सहर्ष स्वीकार करे और स्वयं अंकुश बनें। बच्चे ऐसे ही हैं, लोग ऐसे ही हैं, समाज ऐसा ही है ये प्रसारित न करें।

जो बदलाव आप चाहते हैं, पहले स्वयं बनें। जो बात और आचरण आप अपने बीवी बच्चों के सामने नहीं कर सकते छुपाना पड़े जिसे अंतरमन में आप स्वयं गलत मान चुके हैं उसे प्रलोभन में आ किसी के साथ भी न करें।

अच्छी बात सिर्फ प्रवचनों व पुस्तकों तक और गलत को आचरण में न रखें। प्रकाश की अनुपस्थिति ही अन्धकार है, और नैतिकता का आभाव ही अनैतिकता।

एक सभ्य समाज का दायित्व किसी संस्था और सरकार से पहले हमारा अपना है। स्वयं पे अंकुश को स्वीकार करें मजबूत करें और एक मजबूत अंकुश बनें।

ऐसा माहौल बनाएँ कि गलत को आपकी सीमाओं में तो दूर आसपास आने में भी च्यार बार सोचना पड़े।

जिसे बढ़ावा देंगे वही बढ़ेगा। इसलिए सही को चुनें, स्वार्थ और तृष्णा ने वैसे ही गलत का बहुत विस्तार कर दिया है।

हर्ष शेखावत