आपके द्वारा तो आपको इस शब्द से कभी न कभी अवश्य संबोधित किया गया होगा। महत्वपूर्ण ये नहीं कि आपने किसी को या आपको किसी ने मूर्ख कहा। मूर्ख कहे जाने पर आपकी प्रतिक्रिया महत्व रखती है।
इतिहास में व्याख्यान मिलता है। महाज्ञानी राजा भोज को उनकी रानी एक बार हे मूर्ख कह संबोधित करती है।
उन्होंने खूब विचार चिंतन मंथन मनन किया ये जानने कि रानी ने मूर्ख क्यों कहा रानी अकारण तो ऐसा नहीं कहेगी। मन में उठे प्रश्न के समाधान के लिए उन्होंने अपने नवरत्नों में से एक कालिदास जी को मूर्ख कह संबोधित किया।
कालिदास जी को ये अनुचित तो नहीं पर विचित्र और चकित करने वाला लगा। एक श्लोक द्वारा राजा से प्रश्न करते मूर्ख शब्द को परिभाषित किया।
“खादन्न गच्छामि हसन्न जल्पे
गतं न शोचामि कृतं न मन्ये ।
द्वाभ्यां तृतीयो न भवामि राजन्
किं कारणं भोज भवामि मूर्खः।
हे राजन न मैं चलते चलते खा रहा था, न हँसते हँसते जल ग्रहण कर रहा था, न बीत गए की व्यर्थ चिंता में विचलित था और न ही दो व्यक्तियों के वार्तालाप के बीच तीसरा बना, फिर क्या कारण आपने मुझे मूर्ख कहा?
राजा ने कालिदास जी से क्षमा मांग प्रणाम किया और रानी की समझ पर गर्व, क्योंकि राजा को अपने प्रश्न का जवाब मिल गया था। रानी जब सखियों से बातें कर रही थी तो वह बीच में बोल रहे थे।
यह उदाहरण जहाँ हमें मूर्खता के कारणों का आभास कराता है, वहीं बहुत सी सीख भी देता है।
नकारात्मक शब्द मूर्ख कहे जाने पर प्रतिक्रिया देने के स्थान पर उस विषय को सकारात्मकता से समझने का प्रयास कर परिपक्वता का परिचय दें।
उत्तेजित न होने का विकल्प इस्तेमाल कर, खुद को नियंत्रण में रख नकारात्मक आक्षेप से भी सीख लें, न कि कुछ ऐसा करें जो आक्षेप को सही साबित करे।
आप शांत और चुप रहें आपको मूर्ख कहने दें, आवेश में मुँह खोल मूर्खता साबित न करें।
सकारात्मकता में वो ताकत है जिससे शांत रह परिपक्वता दिखा आप लोगो का पुनः विश्वास जीत सकते हैं वहीं उत्तेजित हो आप विश्वास खो देते हैं।
लोग आपके जीवन में संयोग से आते है, बुद्धि और विवेक का प्रयोग करें। नकारात्मकता पर प्रतिक्रिया से रिश्ता जुड़ने से पहले टूट सकता है। टूटे रिश्तों में सुलह की आवश्यक्ता यदि है तो अविलम्भ करें ।
हर्ष शेखावत
