“प्रभावित और साबित करने का दबाव”

कर्म करना सफल होना एक बात, वहीं क्यों और कैसे दूसरी।

कर्म और सफलता जहाँ प्रभावित और साबित करने का प्रयाय, तो क्यों और कैसे दबाव का कारण है।

जिस कर्म और सफलता को हम दबाव का कारण समझ रहे हैं, वही असल में समाधान भी है। आप कर्म कर सफल होते ही खुद को साबित भी कर देते हैं और लोग स्वतः प्रभावित भी हो जाते हैं।

क्यों और कैसे का दबाव तब तक है जबतक आप परिणाम के लिए कर्म कर रहे हैं और क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित नहीं करते। परिणाम क्षमताओं के अनुसार और क्षमता प्रयासों के अनुरूप कार्य करती है और प्रयास तन मन बुद्धि धन के सही प्रयोग पर निर्भर करता है।

आप सही दिशा में प्रयास करें, आपको न प्रभावित और न ही साबित करना है। ये उस सफलता के परिणाम हैं जो नियमित प्रयासों से किसी ने प्राप्त किए और उससे प्रेरित हो आप भी कर सकते हैं।

यदि जीवन को खेल समझें जिसे हम सबको खेलना है, तो जरूरी खेलना और पूरी क्षमता से खेलना है।

हर कोई अपनी क्षमता के अनुरूप खेलेगा और परिणाम पायेगा। दबाव सभी पर जीत का होता है पर अक्सर बराबर और कम क्षमता होते हुए भी जीतता वही है जो बगैर दबाव खेलता है। क्योंकि दबाव में आप तन मन बुद्धि का प्रयोग पूरी क्षमता से नहीं कर पाते हैं।

इसलिए प्रभावित और साबित करने का दबाव त्याग, तन मन बुद्धि धन का सही प्रयोग कर क्षमता बढ़ा कर्म करें।

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। वंदेमातरम, भारत माता की जय।

हर्ष शेखावत

“संगत”

संगत का सही होना बहुत जरूरी है, क्योंकि गलत संगत आपके जीवन को उतना ही प्रभावित करती है जितना अच्छी संगत।

संगत का सही या गलत होना, आप किस्मत पर नहीं छोड़ सकते।

आपके विकास और सफलता में आपका सही स्थान पर होना, और वहाँ तक पहुँचने के लिए सही संगत का होना अत्यन्त आवश्यक है।

गलत संगत आपके विकास और सफलता पर एक ग्रहण समान है, वहीं अच्छी संगत आपको और अधिक सफलता पाने में न सिर्फ मददगार होती है, वहाँ बने रहने में भी सहायक होती है।

संगत के चुनाव का मतलब ये कतई नहीं है कि आप भेदभाव कर रहे हैं या जिसकी संगत छोड़ रहे हैं उसे गलत या अपने से कम आँक रहे हैं।

जब भगवान राम ने अपने भाइयों के साथ शिक्षा अर्जित करने, राजभवन( माता पिता ) की संगत छोड़ आश्रम में गुरु और गुरुमाता की संगत की तो इसलिए कि राजभवन की संगत उनकी शिक्षा दीक्षा को निश्चित प्रभावित करती। विद्यार्थी के लिए आवश्यक :-

कव्वे सी चेष्टा, बगुले सा ध्यान, कुत्ते सी नींद। खाना कम और घर का त्याग ये पाँच अनिवार्य लक्षण है।(काक चेष्टा, बको ध्यानं,स्वान निद्रा तथैव च । अल्पहारी, गृहत्यागी,विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥ )

जो गुरुकुल में ही सम्भव थे। इसीलिए हमारे यहाँ पहले शिक्षा के लिए गुरुकुल व्यवस्था थी और आध्यात्म की शिक्षा के लिए आश्रम व्यवस्था।

वातावरण का अनुकूल या प्रतिकूल होना आपके द्वारा चयनित संगत पर निर्भर करता है।

आप सकारात्मक सोच रखते हैं और संगत नकारात्मक है तो आप उन्हें और वो आपको प्रभावित अवश्य करेंगे। आपका व्यक्तित्व आपके सामाजिक दायरे से बनता है। और कोई भी विवशता आपके व्यक्तित्व निर्माण और सफलता को बाधित कर सकती है।

इसलिए समझदारी से बिना किसी विवशता के आप अपनी संगत चुने। अच्छी संगत के अभाव में एकांत में रह कर चिंतन करें। बजाय इसके की गलत संगत में चिन्ता।

किसी ने सही कहा है ” गुण मिले तो गुरु, चित्त मिले तो चेला। न मिले दोनों तो, अच्छा है रहो अकेला।”

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। वंदेमातरम, भारत माता की जय।

हर्ष शेखावत