रिश्ता कोई भी हो, उसका आधार आवश्यकता(जरूरत) है। और जरूरत हमेशा नहीं रहती, या फिर कहें बदलती रहती है, और यही कारण है रिश्तों में कड़वाहट और तारतम्य होने न होने का।
जब हम छोटे होते है, हमारी जरूरतें लगभग एक जैसी और छोटी होती हैं। हर रिश्ता चाहे बहन-भाई, भाई-भाई या फिर दोस्ती का ही क्यों न हो कड़वाहट कम और बहुत सुन्दर तारतम्य होता है।
जैसे जैसे हम बड़े होते हैं हमारी प्रकृति विकसित होने लगती है जरूरतें बदलने तो तारतम्य बिगड़ने और कड़वाहट बढ़ने लगती है।
व्यक्ति अपनी अलग विशेषता और स्वभाव से पहचाना जाता है। हर व्यक्ति यही विशेषता/अन्तर रिश्ते में साथ ले कर आया है। बहुत बार तो रिश्ते की वजह भी यही विशेषता/अन्तर बनता है।
दो व्यक्ति कभी एक समान नहीं हो सकते, यदि हम समानता ढूंढ रहे है तो निश्चित ही तारतम्य टूट जाएगा और कड़वाहट बढ़ेगी।
जैसे-जैसे आप रिश्ते में आगे बढ़ेंगे, यह भिन्नता अधिक स्पष्टता से उभर कर सामने आएगी।
अगर आप इस अंतर का आनंद लेते हुए आगे बढ़ना नहीं सीखेंगे, तो स्वाभाविक रूप से रिश्ते में दूरी और कड़वाहट आएगी।
आप रिश्ते में ये अपेक्षा करते हैं कि दोनों एक दिशा और एक तरीके से आगे भढें तो ये स्वयं और अन्य के साथ अन्याय होगा। रिश्ते में दम घुटने लगेगा और टूट जाएगा।
रिश्ते में जैसे जैसे हम आगे बढ़ते हैं परिपक्व होते हैं जरूरतें बदलने लगती है। बदलती जरूरतों के साथ जो कभी महत्वपूर्ण हुआ करता था महत्व खो देता है।
विशेषता की जगह कमियाँ उजागर होने लगती हैं। जो उजागर होगा वही विस्तार भी करेगा, जहाँ विशेषता के विस्तार से तारतम्य मजबूत हुआ, वहीं कमियों ने कड़वाहट बढ़ाई।
हमें किसी रिश्ते को हमेशा के लिए उन्हीं जरूरतों पर आधारित मानने की गलती से बचना है। कमियों को दूर करना या पर्दा डालना है और विशेषताओं को उजागर और प्रसारित करना है।
यह सोचने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है कि रिश्ता अब समाप्त हो गया है। हम कभी भी किसी भी रिश्ते को किसी और रूप में विकसित कर सकते हैं। इसकेलिए रिश्ते के आधार पर काम करने की जरूरत है।
रिश्तों की कड़वाहट को रिश्तों में तारतम्य से बदलने के लिए ये जरूरी है कि हम व्यक्ति की विशेषता और शक्तियों पर अपना ध्यान केन्द्रित करें न कि त्रुटि व कमजोरियां।
हर्ष शेखावत