मान-सम्मान प्राप्त करना हर व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य होता है और होना भी चाहिए।
आप की उप्लब्धधियों के अनुसार लोग आपको मान सम्मान देंगे। उपलब्धी के गर्भ में अहंकार व्यक्ति को अभिमानी बना देता है।
उप्लब्धधियां नैतिक हुईं तो आपका आत्मसम्मान बढ़ेगा, यदि अनैतिक तो अहंकारवश अभिमान बढ़ेगा।
अच्छे स्वभाव और आचरण को महत्व दे प्राप्त उप्लब्धधियों से मिला गौरव स्वाभिमान है, तो स्वयं को महत्व दे दूसरों को तुच्छ समझ प्राप्त मान सम्मान अभिमान है।
स्वाभिमान क्योंकि स्वतंत्र और स्वतंत्रता का पक्षधर होता है अपमान से बचाता है। वहीं अभिमान अपमानित कर अपमानित हो दूसरो की स्वतंत्रता से अपने स्वार्थ के लिए लड़ता है।
आपको अपनी उप्लब्धधियों का यदि भान और स्वाभिमान है, तो क्या अपने अभिमान का ज्ञान भी है?
अपने निजी स्वाभिमान को सार्वजनिक पटल पर (मैं स्वरूप) अभिमान में परिवर्तित न होने दें।
स्वाभिमान जहाँ स्वयं, घर परिवार, समाज और राष्ट्रनिर्माण का मार्ग प्रशश्त करेगा वहीं अभिमान पतन का कारण बनेगा।
हर्ष शेखावत
