“चिंतन करें न कि चिंता, चिंता चिता समान है”

चिंता यदि स्वाभाविक भी हो तो चिंतन करें, चिंता दूर होगी।

चिंता को चिता समान कहा है। चिता और चिंता में फर्क सिर्फ एक बिन्दु का है। जीवित व्यक्ति के विचार बिन्दुओं से आछ्यादित चित को जलाए वो चिंता और व्यक्ति के नश्वर तन को जलाए वो चिता।

बिन्दु के उपयोग का सौन्दर्य देखें, चिंता जो चित जला रही थी, बिन्दु हटी तो चिता बन तन जलाने लगी।

वही चित और तन किसी विचार बिन्दू पर समन्वित हो चित+तन ऊपर बिन्दु ले  चिंतन बन चिंता को दूर करने लगा।

इसलिए हर परिस्थिति में, हर बिंदु पर जब भी चिंताग्रस्त हों तो चिंतन/विचार विमर्श कर चिंता दूर करें।

हर्ष शेखावत

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