“लालच एक बला ?”

लालच बुरी बला है,
यदि निजता में पला है।

यदि क्षमता से अधिक पाना है ,
अधिकार से किसीको वंचित करना है।

लालच एक कला है,
यदि सबको मान मिला है,

मुख सबका खुशी से खिला है,
यदि सुव्यवस्था में जो ढला है।

संतोष में ही, यदि जीवन है,
तो अभावग्रस्त क्यों ये मन है?

यदि अधिक पाना लालच है,
तो नैतिक कमाई बढ़ाना क्या है?

इसलिए

लालच करो, लालची बनो, लालच से न डरो।

सिर्फ

परिणाम सुखद हो, दीर्घकालिक हो, इतना सा ध्यान धरो।

हर्ष शेखावत

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