“संगत”

संगत का सही होना बहुत जरूरी है, क्योंकि गलत संगत आपके जीवन को उतना ही प्रभावित करती है जितना अच्छी संगत।

संगत का सही या गलत होना, आप किस्मत पर नहीं छोड़ सकते।

आपके विकास और सफलता में आपका सही स्थान पर होना, और वहाँ तक पहुँचने के लिए सही संगत का होना अत्यन्त आवश्यक है।

गलत संगत आपके विकास और सफलता पर एक ग्रहण समान है, वहीं अच्छी संगत आपको और अधिक सफलता पाने में न सिर्फ मददगार होती है, वहाँ बने रहने में भी सहायक होती है।

संगत के चुनाव का मतलब ये कतई नहीं है कि आप भेदभाव कर रहे हैं या जिसकी संगत छोड़ रहे हैं उसे गलत या अपने से कम आँक रहे हैं।

जब भगवान राम ने अपने भाइयों के साथ शिक्षा अर्जित करने, राजभवन( माता पिता ) की संगत छोड़ आश्रम में गुरु और गुरुमाता की संगत की तो इसलिए कि राजभवन की संगत उनकी शिक्षा दीक्षा को निश्चित प्रभावित करती। विद्यार्थी के लिए आवश्यक :-

कव्वे सी चेष्टा, बगुले सा ध्यान, कुत्ते सी नींद। खाना कम और घर का त्याग ये पाँच अनिवार्य लक्षण है।(काक चेष्टा, बको ध्यानं,स्वान निद्रा तथैव च । अल्पहारी, गृहत्यागी,विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥ )

जो गुरुकुल में ही सम्भव थे। इसीलिए हमारे यहाँ पहले शिक्षा के लिए गुरुकुल व्यवस्था थी और आध्यात्म की शिक्षा के लिए आश्रम व्यवस्था।

वातावरण का अनुकूल या प्रतिकूल होना आपके द्वारा चयनित संगत पर निर्भर करता है।

आप सकारात्मक सोच रखते हैं और संगत नकारात्मक है तो आप उन्हें और वो आपको प्रभावित अवश्य करेंगे। आपका व्यक्तित्व आपके सामाजिक दायरे से बनता है। और कोई भी विवशता आपके व्यक्तित्व निर्माण और सफलता को बाधित कर सकती है।

इसलिए समझदारी से बिना किसी विवशता के आप अपनी संगत चुने। अच्छी संगत के अभाव में एकांत में रह कर चिंतन करें। बजाय इसके की गलत संगत में चिन्ता।

किसी ने सही कहा है ” गुण मिले तो गुरु, चित्त मिले तो चेला। न मिले दोनों तो, अच्छा है रहो अकेला।”

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। वंदेमातरम, भारत माता की जय।

हर्ष शेखावत

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