इंसान को अपनाओ,
खोखला अपनापन मत जताओ।
इंसानियत रिश्तों की मोहताज नहीं होती,
जो होती है वह धोका है।
व्यक्ति की मनोवृत्ति है,
दूसरों की अपेक्षा स्वयं में अधिक लीन रहने की।
दान पुण्य तक अपनी संतुष्टी और आनन्द से प्रेरित होता है।
मानव स्वभाव है,
दूसरों की अपेक्षा खुद की अधिक चिंता करने का।
हमारा हर कार्य,
क्यों स्वार्थ और अपनी भलाई से नियंत्रित होता है।
स्वार्थ में न शर्मिंदगी न क्षमा की आवश्यकता है।
परोपकार निहित हो स्वार्थ में भी,
बस इतनी सी अपेक्षा है।
इंसान बनने से किसने किसको रोका है।
ये स्वार्थ, इंसानियत और रिश्ता है।
ये स्वार्थ का और इंसानियत का रिश्ता है।
रिश्ता सुरक्षा और संस्कारों की ढाल है,
इसे शस्त्र न बनाओ।
जब उन्हीं पर आंच आए तो,
दिव्यास्त्र बन जाओ किसने रोका है।
हर्ष शेखावत
