श्री गिरधारी सिंह जी शेखावत सुविख्यात शिक्षाविद हैं और अपने देश-विदेश के सुदीर्घ शैक्षिक अनुभव के आधार पर आपने बिरला पब्लिक स्कूल पिलानी के बाद बी. आर. सी. एम. पब्लिक स्कूल बहल और एस. एम. निमावत पब्लिक स्कूल फतेहपुर शेखावाटी में संस्थापक प्राचार्य एवं निदेशक जैसे उत्तरदायी पदों पर कार्य करते हुए इन शिक्षण संस्थानों को श्रेष्ठता की ओर उन्मुख किया है। अंग्रेजी माध्यम के आवासीय विद्यालयों का आपने देश – एवं विदेश के स्तर पर भ्रमण करते हुए उनकी कार्य पद्यति और श्रेष्ठता के मापदंडों का गहरा अध्यन किया है। यह जहाँ आपके समर्पित शिक्षक की उदात्त भावना का परिचायक है वहीं आपकी कर्मठता, सजगता, विद्वता, लगन एवं निष्ठा भाव का भी।
सन १९६५ में मेरा परिचय श्री गिरधारीसिंह जी शेखावत से पिलानी में हुआ। उस समय मैं एम. ए. का विद्यार्थी था। मैं ७ वर्ष तक पिलानी रहा। इस बीच श्री गिरधारीसिंह जी शेखावत से घनिष्ठता भी हो गई। स्कूल स्टार पर इतने सुयोग्य विद्वान, प्रखर वक्ता और अत्यंत स्नेह रखने वाले श्री गिरधारीसिंह जी शेखावत से मैं बखूबी प्रभावित रहा। फिर मैं पिलानी छोड़कर तोदी कॉलेज, लक्ष्मणगढ़ में आ गया तो इत्तफाक से श्री गिरधारीसिंह जी भी बहल छोड़ लक्ष्मणगढ़ आ गए। एक बार का टूटा परिचय फिर जुड़ा। मेरी इच्छा हुई कि आप पर एक ग्रंथ का प्रकाशन किया जाए। लेकिन श्री गिरधारीसिंह जी शेखावत ने कहा कि मेरी विचारधारा में व्यक्ति पूजा और व्यक्ति प्रशंसा का स्थान नहीं है। मैं नहीं चाहता कि ऐसा कोई ग्रंथ प्रकाशित हो। लेकिन मैंने उन्हें समझाया कि यह ग्रंथ स्तुतिपरक नहीं होगा। आपने शिक्षा के क्षेत्र में जो योगदान दिया है उसका परिचय समाज के हित में रहेगा। मेरा उद्देश्य आपकी अच्छाइयों को जानकारी रूप में प्रस्तुत करना भर है। इस पर श्री गिरधारीसिंह जी ने ये कहते हुए कि मैं अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर चुका हूं उसी को ध्यान में रख कर अगर आपकी कुछ करने की इच्छा है तो मैं आपकी भावना जा अनादर नहीं करूंगा।
मैन ग्रंथ की रूपरेखा तैयार की। उनसे सलाह ली। ग्रंथ समिति के परामर्शक मण्डल, आयोजन समिति और प्रकाशन समिति का गठन किया। लोगों से सुझाव एवं सलाह ली और एक सर्वे सम्मत निर्णय के आधार पर इस योजना और काम करना शुरू किया।
योजना के अनुसार यह ग्रंथ 2002 में प्रकाशित हो जाना चाहिए था, लेकिन बीच में कई तरह की बाधाएं आती रही और लेखन कार्य शिथिल रहा। लेकिन इस बार श्री गिरधारीसिंह जी शेखावत के जन्मदिन(रक्षाबंधन) पर इसे प्रकाशित करने का दृढ़ संकल्प लिया और प्रभु कृपा से पूरा हुआ, इसकी प्रसन्नता है।
ग्रंथ की योजना के अनुसार श्री गिरधारीसिंह जी शेखावत के सहयोगियों, शुभचिंतकों और उनके समाजिक जीवन से जुड़े लोगों से पत्रव्यवहार किया गया कि वे अपने संस्मरण हमें भेजें। इस संदर्भ में काफी सामग्री हमें प्राप्त हुई उनमें से कुछ मूल्यवान संस्मरण ग्रंथ में प्रस्तुत किए गए हैं। श्री गिरधारीसिंह जी की वंशविरासत और उनके जीवनवृत्त को प्रस्तुत करना भी अत्यावश्यक था इसलिए इस सम्बंध में श्री नारायणसिंह जी तथा स्वयं गिरधारीसिंह जी से कुछ सामग्री उपलब्ध हुई। इसी क्रम में गाँव की वंशावली भी दी गई है।
श्री गिरधारीसिंह जी ने कुछ व्यंग कुंडलियां भी लिखी है उसकी बानगी भी परिशिष्ट में दी गई हैं।
श्री गिरधारीसिंह जी को डायरी लिखने का शुरू से शौक रहा है। आपकी डायरियां अद्भुत, रोचक, एवं परिवार – समाज से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों का लेखा जोखा है, जिसमें तिथि, समय, विवाह- शादी, यात्रा, उत्सव खर्चा आदि का विस्तृत विवरण है, पुस्तक में अमेरिका प्रवास की डायरी के अंश एवं अन्य डायरियों से लिए गए कुछ चुनिन्दा और महत्वपूर्ण अंश भी प्रस्तुत किए हैं।अन्य आत्मकथन, शिक्षक जीवन के बढ़ते कदम, संवाद आदि आपके व्यक्तित्व के विविध आयामों को छूने वाले एवं शैक्षिक उप्लब्धधियों को उजागर करने वाले आलेख हैं।
सामग्री तथा फोटो वगैरा चयन में श्री धर्मवीर सिंह जी का बराबर सहयोग मिला है। मैं सभी लेखकों एवं सहयोगी बंधुओं का आभारी हूँ जिन्होंने आदर स्नेह ऐवं श्रद्धा को इन आलेखों में अभिव्यक्त किया है। सूंदर प्रकाशन के लिए भाई डॉ चेतन स्वामी को भी धन्यवाद।
डॉ गोवर्धनसिंह
